
छत्तीसगढ़ प्रदेश के गरियाबंद जिले में कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को शिक्षा से वंचित कर मजदूरी में धकेलने की समस्या बढ़ती जा रही है । बच्चे स्कूल जाना छोड़कर भेड़ बकरी चराना, महुआ बीनना, और अन्य घरेलू कार्यों में लगे है । बच्चों से काम करवाने के लिये क्या उनके माता-पिता स्वयं जिम्मेदार हैं ? या उनका गरीबी ? या माता पिता का शैक्षणिक योग्यता की कमी ? सामाजिक कु रिती?

गरियाबंद जिले के ग्राम पंचायत कुहिमाल , खरी पथरा , बारीघाट क्षेत्रों में बच्चों को शिक्षा से वंचित करते हुए घरेलू कार्यों को ,मजदूरो की तरह कार्य कराने के समस्या बढ़ती ही जा रही है । आज भी कई मासूम बच्चे शिक्षा से वंचित रहकर खेतों, ईंट-भट्टों, होटलों और घरों में मजदूरी करने को मजबूर हैं। खासकर जंगल और ग्रामीण इलाकों में यह और गंभीर समस्या हैतो जा रहा है ।

क्योंकि जिस गांव में स्कूल है उस स्कूल के शिक्षक स्कूल नहीं पहुंचते ऐसे में बच्चे स्कूल छोड़कर मजदूरी करने में मजबूर हो जाते है । इस विषय पर ग्राम पंचायत सचिव और उनके माता-पिता तथा अधिकारी से बच्चों से स्कूल ना भेजने की बात पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस संबंध में वे जांच पड़ताल करेंगे और बच्चों को स्कूल भेजने की व्यवस्था करेंगे ।

स्कूल भेजने के बजाय गाँवों में माता-पिताअपने बच्चों को पढ़ाने की जगह बकरी चराने, हल जोतने और महुआ बीनने जैसे काम करवाने पर मजबूर हैं।जब कुछ बच्चों से स्कूल न जाने का कारण पूछा गया, तो उन्होंने जवाब दिया कि स्कूल सोमवार को बंद था, जबकि क्षेत्र में सभी स्कूल संचालन हो रहा था । इसलिए वे महुआ बीनने चले गए। जिस स्कूल पर शिक्षक ही नहीं पहुंचते ऐसे मैं यह स्थिति निर्मित होना लाजमी है ।

एजेंसियाँ और स्थानीय प्रशासन इस समस्या के समाधान में गंभीरता नहीं दिखा रहे। “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसी योजनाएँ केवल नारों तक सीमित रह गई हैं, जबकि हकीकत यह है कि गाँवों में आज भी बेटियाँ शिक्षा से वंचित हैं और परिवार के घरेलू कार्यों में लगा दी जाती हैं। सरकार और समाज इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाएगी तो आने वाली पीढ़ी अंधकार में भटकती रह जाएगी। केवल नीतियाँ बनाने से कुछ नहीं होगा, बल्कि ज़मीनी स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन की जरूरत है।

हम सभी को मिलकर यह संकल्प लेना होगा कि किसी भी बच्चे का बचपन मजदूरी में न बीते। “पढ़ोगे तो बढ़ोगे ” यह सिर्फ नारा तक सीमित न रहकर जमीन स्तर पर उतरना चाहिए । इस नारे के महत्व को लोगों को समझना चाहिए खासकर बच्चों के माता और पिता को , जो गरीबी रेखा से नीचे रह रहे है । सरकार को चाहिए कि वह इन योजनाओं का सख्ती से पालन कराए, स्थानीय प्रशासन को सक्रिय बनाए । तभी सही मायनों में देश का विकास संभव होगा। अब समय आ गया है कि हम सिर्फ बातें न करें, बल्कि एक ठोस बदलाव लाने के लिए कदम बढ़ाएँ !

हमारा चैनल का मकसद , शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा दिलाना है और इसके लिए समाज को जागरूकता फैलाने के लिए यह समाचार प्रसारित की जा रही है । अतः सभी जिम्मेदार ,नेताओं, माता-पीताओं और संबंधित अधिकारियों से आग्रह है कि, बच्चों का खेलने कूदने की उम्र में उनका मन का पर को ना कतरे, उन्हें खुली आसमान में जीने के लिए छोड़े । पढ़ने के लिए छोड़े और अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए उनको प्रेरित करें । बच्चों को स्कूल भेजने के लिए माता-पिता को समझाइश दे । जन जागरूक कार्यक्रम चलाएं । बच्चों से मजदूरी न करवाए जो देश के भविष्य हैं। तब जाकर आने वाले दिनों में हमारे देश बन सकता है विश्व गुरु।



