प्रसाद स्वरूप होली को सिर्फ सर पर लगाने का परंपरा है । प्रसाद स्वरूप इस होली मानने के बाद रात्रि कालीन रंगारंग कार्यक्रम का होता है शुरुआत ।
गरियाबंद जिले के पड़ोस में स्थित मथुरा गांव सदियों से एक अनोखी और ऐतिहासिक परंपरा को निभा रहा है। यहां होली का त्योहार पूरे पांच दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन खास बात यह है कि इस दौरान केवल गुलाल से होली खेली जाती है, किसी भी प्रकार के केमिकल युक्त रंगों का उपयोग नहीं किया जाता।
भगवान राधा-कृष्ण के सानिध्य में खेली जाती है होली
हर साल होली के पांच दिन पहले गांव के राधा-कृष्ण मंदिर से भगवान की प्रतिमाओं को शाम के समय मंदिर से बाहर निकाला जाता है। भगवान के सामने पूरे गांव के लोग गुलाल से होली खेलते हैं। अगले दिन सुबह भगवान राधाकृष्णा की शोभायात्रा निकाली जाती है, जो पूरे गांव का भ्रमण कर मंदिर में वापस लौटती है। इन पांच दिनों में गांव में हर रात रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम और नाटक का आयोजन किया जाता है।
ड्रामा और लोक कला का अद्भुत संगम
गांव के पुरुष ही महिला पात्रों का अभिनय करते हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक इस नाटक का हिस्सा बनते हैं। पुराने जमाने के दृश्यों और सीन स्क्रीन का इस्तेमाल कर पारंपरिक नाटक प्रस्तुत किए जाते हैं। मशाल जला कर नाटक का स्वागत कर रहे जमानत से केएसर लाइट तक के जमानत तक ईहुंच चुके इस गांव के सीनियर कलाकार ही नए कलाकारों को मार्गदर्शन देते हैं। कॉस्ट्यूम और अन्य सामग्री गांव के पास ही उपलब्ध होती है, जिससे आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की जाती है।
बच्चों के आत्मविश्वास को मजबूत करने का मंच
ग्रामवासियों का मानना है कि इस ड्रामे में बच्चों की भागीदारी उनके आत्मविश्वास को बढ़ाती है। मंच पर प्रस्तुति देने से बच्चों का डर दूर होता है और उनमें सार्वजनिक रूप से बोलने का आत्मबल विकसित होता है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सदियों पहले गांव के एक बुजुर्ग ने इस परंपरा को शुरू क्या था और बाकी ग्राम वासियों को इस कार्यक्रम को कभी बंद न करने का कसम दिया था, जिसे आज तक पूरी श्रद्धा से निभाया जा रहा है।
बिना चंदा जुटाए किया जाता है पूरा खर्च
गांव के राधा-कृष्ण मंदिर ट्रस्ट से होने वाली कमाई से पूरे कार्यक्रम का खर्चा उठाया जाता है। महंगाई के इस जमाने नई भी हर साल इस आयोजन पर करीब 11 से 12 लाख रुपये का खर्च आता है। इसके बावजूद ग्रामवासी किसी से चंदा नहीं मांगते, बल्कि स्वेच्छा से इस परंपरा को बनाए रखते हैं।
संस्कृति और पर्यटन विभाग से मिल चुकी है सराहना
इस अनोखी परंपरा और संस्कृति को जीवित रखने के लिए संस्कृति और पर्यटन विभाग ने कई बार मथुरा गांव के राधा-कृष्ण क्लब को सम्मानित किया है। ग्रामवासियों के सामूहिक प्रयास और सदियों पुरानी परंपरा के प्रति समर्पण ने इस त्योहार को विशेष बना दिया है।
पर्यावरण संरक्षण की पहल
गांव के लोगों का मानना है कि केमिकल युक्त रंग पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए यहां सिर्फ गुलाल से होली खेली जाती है, जिससे न केवल परंपरा का सम्मान होता है, बल्कि पर्यावरण संतुलन भी बनाए रखा जाता है।
मथुरा गांव के इस अनूठे होली उत्सव ने पूरे क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है। जहां आधुनिकता की दौड़ में पारंपरिक त्योहार पीछे छूट रहे हैं, वहीं मथुरा गांव की इस परंपरा ने सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखा है। इस विषय पर न्यूज़ पेपर के लिए एक न्यूज़ बनाईए