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उपेक्षा की शिकार अंबेडकर की प्रतिमा: जंगल के सन्नाटे में गूंजता एक सवाल – अंबेडकर किसके ?

गऱियाबंद/मैनपुर।
उदंती-सीता नदी टाइगर रिजर्व के घने जंगलों के बीच, सारनामाल नामक वीरान हो चुके गांव में आज भी बैठी है भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा – निस्वार्थ, मौन और उपेक्षा की मार झेलती हुई।

कभी यही सारनामाल गांव, जहां ग्रामीण वर्षों से बसे हुए थे, सामाजिक जागरूकता और समरसता का प्रतीक था। गांव के लोगों ने मिलकर अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित की थी, जहां हर साल 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती धूमधाम से मनाई जाती थी। पूजा होती थी, दीप जलते थे, माला चढ़ती थी, और रंग-रोगन कर प्रतिमा को सजाया जाता था।

अब वहां है तो बस सन्नाटा।
मूर्ति की रंगत फीकी पड़ चुकी है, आसपास की जगह झाड़ियों और सूखे पत्तों से ढकी हुई है। ना दीप जलते हैं, ना माला चढ़ती है, ना कोई सर झुकाने आता है। है, तो बस एक आस – कब मिलेगा डॉ. अंबेडकर को न्याय ?

वन विभाग द्वारा “अवैध अतिक्रमण” बताकर अचानक पूरे गांव को उजाड़ दिया गया। यह तब, जब गांव में दो बोरवेल, एक सोलर पंप, और सोलर लाइट की सरकारी व्यवस्था की गई थी। ग्रामीणों के पास राशन कार्ड थे, और वे शासन की अन्य सुविधाओं का भी लाभ ले रहे थे।

तो सवाल उठता है – अगर वह गांव अवैध था, तो सरकारी सुविधाएं क्यों दी गईं? और अगर वह अधिकृत था, तो उजाड़ क्यों दिया गया ?

अब जब पूरा क्षेत्र वन विभाग के अधीन है, तो अंबेडकर प्रतिमा की देखरेख की जिम्मेदारी कौन निभाएगा? क्या संविधान निर्माता की प्रतिमा सिर्फ एक उपेक्षित स्मारक बनकर रह जाएगी ?

गांव उजड़ गया, लोग विस्थापित हो गए, पर अंबेडकर की मूर्ति वहीं है – जैसे आज भी न्याय और सम्मान की उम्मीद लगाए बैठी हो।

क्या इस 14 अप्रैल को कोई वहां माला चढ़ाएगा?
क्या कोई सफाई करेगा, रंग रोपेगा?
क्या समाज और प्रशासन का कोई दायित्व नहीं बनता?

यह केवल एक मूर्ति की कहानी नहीं है, यह सवाल है – उस विचारधारा और संघर्ष का जिसे अंबेडकर ने अपनी पूरी ज़िंदगी में जिया।

आज जब हम संविधान की बात करते हैं, सामाजिक न्याय की बातें करते हैं – तो क्या यह भी हमारी जिम्मेदारी नहीं बनती कि उनके विचारों का प्रतीक बनी इस प्रतिमा को भी सम्मान मिले? सम्मान और न्याय की आस करती ,यह केवल एक मूर्ति की कहानी नहीं है ,यह सवाल है _उस विचारधारा और संघर्ष की जिसे डॉ.अंबेडकर ने अपनी पूरी जिंदगी में जीया ।

शब्द मौन हैं, पर मूर्ति अब भी सवाल पूछ रही है – अंबेडकर किसके हैं ? मूर्ति बनाने वाले उस सरनामाल ग्राम वासियों के या ग्राम को उजाड़ कर वीरान बनाने वाले वन विभाग के ? बड़ा सवाल

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