गरियाबंद, 10 मार्च 2025। छत्तीसगढ़ के उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व के इंदा गांव परिक्षेत्र (क्षेत्र क्रमांक 1216 और 1218) में 8 मार्च 2025 को भीषण आग लगने से 90 हेक्टेयर जंगल मै से 30_ 35 हैक्टर पूरी तरह से जलकर नष्ट हो गया। यह वही क्षेत्र है जहां वन विभाग द्वारा लगभग 51.3 लाख रुपये की लागत से वृक्षारोपण किया गया था। इस आग से लग भग 24,000 से अधिक पेड़ नष्ट हो गए, जिससे पर्यावरण को भारी क्षति हुई है।

वृक्षारोपण और वन विभाग की कथित लापरवाही
वन विभाग द्वारा पिछले साल इस क्षेत्र से अवैध कब्जाधारियों को हटाने के बाद वृक्षारोपण किया गया था। 1216 में 44,000 मिश्रित पेड़, और 1218 में 20,000 बांस के पौधे लगाए गए थे। लेकिन इस वृक्षारोपण को बचाने के लिए कोई उचित सिंचाई व्यवस्था नहीं की गई।
- न कोई बोरवेल खुदवाया गया और न ही किसी वैकल्पिक जल स्रोत की व्यवस्था की गई।
- प्राकृतिक बारिश पर निर्भरता के चलते हजारों पौधे पहले ही सूख चुके थे।
- फायर लाइन नहीं बनाई गई, जिससे आग तेजी से फैली और काबू पाना मुश्किल हो गया।

क्या यह प्राकृतिक आग थी या सुनियोजित साजिश?
आग उन्हीं हिस्सों में लगी जहां पेड़ पहले ही सूख चुके थे। इस तथ्य ने कई संदेहों को जन्म दिया है। क्या यह मानवजनित घटना थी? क्या जंगल से हटाए गए अवैध कब्जाधारियों की इसमें कोई भूमिका है? या फिर यह वन विभाग की लापरवाही को छिपाने का प्रयास था?
उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व के उप निदेशक वरुण जैन ने इस घटना को संदिग्ध मानते हुए कहा:
“यह घटना एक साजिश हो सकती है। हो सकता है कि आग लगाने में महुआ बीनने वाले लोग, अवैध कब्जाधारी, या अन्य किसी अज्ञात समूह की भूमिका हो। हमने 8 तारीख को ही अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दायर कर दिया है और ड्रोन की मदद से पूरे क्षेत्र की जांच कर रहे हैं, और जो भी दोषी होगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”

वन विभाग की निष्क्रियता पर सवाल

- फायर लाइन क्यों नहीं बनाई गई?
- आग से बचाव के लिए पहले से कोई तैयारी क्यों नहीं थी?
- क्या वन विभाग की लापरवाही इस घटना के पीछे है?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत किसी भी वन क्षेत्र में फायर लाइन का निर्माण अनिवार्य होता है, लेकिन इस क्षेत्र में ऐसा कोई इंतजाम नहीं किया गया। निचले स्तर के अधिकारियों पर भी सवाल उठ रहे हैं कि उन्होंने इस कार्य में गंभीरता क्यों नहीं दिखाई?

सरकार को तत्काल उच्चस्तरीय जांच करनी चाहिए

इस घटना से वन्यजीवों और पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुंची है। सरकार को गंभीरता से इसकी जांच करानी चाहिए और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। अगर यह घटना सुनियोजित साजिश है, तो दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

वन विभाग की निष्क्रियता, स्थानीय प्रशासन की अनदेखी और संभावित षड्यंत्र ने पर्यावरण संरक्षण की एक बड़ी योजना को विफल कर दिया है। अगर समय रहते सरकार और प्रशासन ने कदम नहीं उठाए, तो ऐसे हादसे दोबारा हो सकते हैं और वन संरक्षण की मुहिम धरी की धरी रह जाएगी।

👉 क्या यह आग प्राकृतिक थी या मानवजनित?
👉 वन विभाग की लापरवाही का जिम्मेदार कौन?
👉 क्या इस साजिश के पीछे कोई बड़ा खेल है?

सरकार और प्रशासन को जल्द से जल्द इन सवालों के जवाब ढूंढने होंगे ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके और जंगलों को सुरक्षित रखा जा सके।

