बस्तर के माटी न्यूज़ (BKM)गरियाबंद
मैनपुर-देवभोग के आयुर्वेद केंद्र खुद ही इलाज के मोहताज

देवभोग/मैनपुर:
“अगर अस्पताल ही बीमार हो, तो मरीज़ का इलाज कैसे मुमकिन है?”—यह सवाल आज मैनपुर और देवभोग ब्लॉक के उन गांवों में गूंज रहा है जहां सरकार ने आयुर्वेद ग्राम के नाम पर स्वास्थ्य सेवा की नींव रखने की बात कही थी। लेकिन हकीकत बेहद कड़वी और चिंताजनक है।

सरकार ने इन ब्लॉकों में 6 से 7 आयुर्वेदिक ग्रामों में एक-एक आयुर्वेदिक अस्पताल की स्थापना कर लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा का लाभ दिलाने की मंशा जताई थी। उद्देश्य था कि लोग एलोपैथिक दवाओं के साइड इफेक्ट से बचें और पारंपरिक पद्धति से स्वस्थ जीवन की ओर बढ़ें। लेकिन यह मंशा कागजों तक ही सिमट कर रह गई है।

तनख्वाह महीने भर का इलाज सिर्फ तीन,चार दिन ! इलाज चौथी श्रेणी के कर्मचारियों से तो, पिछले महीने खरीदे गए लाखों के फर्नीचर किसके लिए ?
सरकारी रिकॉर्ड में हर अस्पताल में डॉक्टर पदस्थ हैं। सभी को तनख्वाह बराबर जा रही है,लेकिन हकीकत यह है कि महीने में महज तीन से चार बार ही डॉक्टर दर्शन देते हैं। एक कर्मचारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, “डॉक्टर साहब सिर्फ महीने में तय तारीखों पर आते हैं, वह भी कभी-कभी। बाकी दिन मरीजों को अस्थायी स्टाफ ही देखता है।”

भवन की हालत खस्ता, 5 साल में ही ध्वस्त होने की कगार पर
उरमाल स्थित आयुर्वेद अस्पताल की इमारत महज चार से पांच साल पहले ही बनी थी। लेकिन वर्तमान में उसका प्लिंथ पिलरों से अलग हो चुका है। पिलर कमजोर हो रहा है । दीवारों में दरारें इतनी बड़ी हैं कि उजाले की लकीर आर-पार दिखने लगी है। बाथरूम की हालत तो और भी बदतर—न पानी, न नल, न साफ-सफाई। कोई ना देख पाए इसलिए डॉक्टर साहब हर बाथरूम में ताला लगा कर चाबी अपने पास रखें हैं । स्थिति देख लगता है, मरीजों से ज़्यादा बिल्डिंग को इलाज की ज़रूरत है।

सरकारी निर्माण में गुणवत्ता की खुली पोल
सरकारें हर साल करोड़ों खर्च कर भवन निर्माण कराती हैं, लेकिन निर्माण की गुणवत्ता पर कोई ठोस निगरानी नहीं। ऐसा लगता है जैसे इंजीनियर और ठेकेदार सिर्फ “अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता” की तर्ज पर काम करते हैं। इस इमारत में पिलर और प्लिंथ के बीच एल-बैंड सरिया तक नहीं लगाया गया, जो भवन निर्माण की एक आधारभूत ज़रूरत है।

विकसित भारत का सपना, लेकिन आधार ही खोखला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां एक ओर विकसित भारत की बात करते हैं,आयुर्वेद को पूरे विश्व पटल पर सामने लाना चाहते हैं। योग को पूरे विश्व में फैला कर उसे नई बुलंदी तक पहुंचा चुके हैं वहीं ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। सरकारी लापरवाही, फर्ज अदायगी की कमी और निर्माण में भ्रष्टाचार—क्या इन्हीं बुनियादों पर खड़ा होगा नया भारत?
यह सवाल सिर्फ मैनपुर या देवभोग का नहीं है, बल्कि हर उस कोने का है जहां सरकारी आयुष स्वास्थ्य सेवाएं कागजों पर ज़िंदा हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में दम तोड़ रही हैं। ज़रूरत है जवाबदेही तय करने की, गुणवत्ता सुनिश्चित करने की, और सबसे ज़रूरी—जनता की आवाज़ सुनने की।