RNI NO. CHHHIN /2021 /85302
RNI NO. CHHHIN /2021 /85302

बस्तर के परम्परागत वाद्य यंत्रों को बनाने में अब नई पीढ़ी में भी उत्साह कोंडागांव से गूंजेंगी मधुर बस्तरिया स्वर की लहर

सत्यानंद यादव


कोण्डागांव बस्तर के माटी,23 जून 2023 /* वैश्विकरण के बढ़ते प्रभाव से बस्तरिया गीत – संगीत भी अछूता नहीं रहा,समय के साथ इनका चलन लगातार कम हो रहा है इसकी एक बहुत बड़ी वजह इन वाद्ययंत्रो का अभाव भी है, क्यूंकि इन वाद्ययंत्रो को गिने – चुने लोग ही बना पाते हैं। बस्तर की अद्भुत और सरल संस्कृति को संरक्षित और संवर्धित करने के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कोंडागांव प्रवास के दौरान आदिवासी सम्मेलन में लोगो से चर्चा की थी।
आदिवासी समाज के सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण को बढ़ावा देने हेतु विलुप्त आदिवासी वाद्य यंत्रों को पुनर्जीवित करने की मुख्यमंत्री द्वारा की गई घोषणा पर जिला प्रशासन ने अमल करते हुए क्षेत्र के युवाओं को प्रशिक्षित करने का कार्य प्रारम्भ कर दिया है। इसके तहत शिल्प नगरी में 15 दिवसीय प्रशिक्षण दिया जा रहा है इस प्रशिक्षण में मांदर, खुटमांदर, ढोल, ढपरा, तुड़बडी, निशान, ढूंडरा या कोटोडका, तोड़ी, तुरई, घाटी, कौड़ी, मंजुरजाल आदि बनाने को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिसे आदिवासी समुदाय कई पीढ़ियों से उपयोग में ला रहा है। प्रशिक्षक रामेश्वर मरकाम कहते हैं कि पहले हमारे दादा परदादा लोग ढोल मांदर निशान बनाते थे पर अब धीरे-धीरे इस कला को लोग भूल रहे हैं जिससे यह कला अब विलुप्त होने की कगार में है।
मैं यहां पर 5 लोगों को ढ़ोल मांदर तुड़बुड़ी बनाने की प्रशिक्षण दे रहा हूं और और यहाँ प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे युवा मेरे द्वारा बताई गई हर बारीक जानकारियों को अच्छे से समझ रहे हैं और बना रहे हैं इसके लिए जरूरत का हर सामग्री हमें प्रशासन उपलब्ध करा रहा है।
इस प्रशिक्षण से विलुप्त आदिवासी वाद्य यंत्रों को एक नई पहचान मिलेगी क्यूंकि आदिवासी समुदाय देवी-देवताओं के पूजन त्यौहारों, शादी, जात्रा जैसे विशेष अवसरों में पारंपरिक वाद्य यंत्रों का उपयोग करते हैं, साथ ही इस प्रशिक्षण से रोजगार के नए अवसर भी खुलेंगे।
बस्तर के परम्परागत वाद्य यंत्रों को बनाने में अब नई पीढ़ी भी उत्साहित है कि इसके माध्यम से बस्तर के गीत-संगीत को बढ़ावा मिलेगा और नई पीढ़ी को यहाँ की मधुर संगीत की जानकारी मिलेगी। यहाँ प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे चिलपुटी के दिनेश मरकाम ने बताया कि वे परम्परागत रूप से कृषक परिवार से हैं तथा वे कृषि उपकरण भी बनाते हैं यहाँ वाद्य यंत्रों को बनाने के दिए जा रहे प्रशिक्षण में शामिल होकर स्वयं को सौभाग्यशाली बताते है। उन्होंने कहा कि इस प्रशिक्षण के बाद वे वाद्ययंत्र तैयार करेंगे और लोगों को यहाँ की मधुर संगीत की अनुभूति करायेंगे वे आने वाले समय में अन्य युवाओं को भी इसका प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित करेंगे।

Facebook
Twitter
WhatsApp
Reddit
Telegram

Leave a Comment

Weather Forecast

DELHI WEATHER

पंचांग

error: Content is protected !!