उड़ीसा की 6 महीने की बच्ची की अनोखी उपलब्धि
पारलाखेमुंडी, उड़ीसा – कहते हैं कि बचपन में मिली शिक्षा और संस्कार व्यक्ति के भविष्य की नींव रखते हैं। इसी बात को सच साबित किया है उड़ीसा के पारलाखेमुंडी की मात्र 6 महीने की बच्ची साईं श्लोका पाइक ने, जिसने नोबेल बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवाकर इतिहास रच दिया है।

6 महीने की उम्र में असाधारण प्रतिभा
साईं श्लोका अभी बोल भी नहीं पाती, लेकिन वह 115 प्रकार के फ्लैश कार्ड्स को पहचानने में सक्षम है। महापुरुषों से लेकर जीव-जंतुओं तक की पहचान करना उसकी विशेषता बन चुकी है। उसके माता-पिता ने जब यह देखा कि बच्ची में सीखने की अद्भुत क्षमता है, तो उन्होंने तीन महीने की उम्र से ही उसे विशेष रूप से प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया।

गर्भ संस्कार की अहम भूमिका
साईं श्लोका की मां बताती हैं कि उन्होंने गर्भ संस्कार की विधि को अपनाया था। यह एक प्राचीन भारतीय परंपरा है, जिसमें माता-पिता गर्भ में ही बच्चे को अच्छे विचार, ज्ञान और संस्कार देने का प्रयास करते हैं।

महाभारत में वर्णित अभिमन्यु का उदाहरण भी यही सिद्ध करता है कि गर्भ में ही शिक्षा ग्रहण करना संभव है। इसी सिद्धांत का पालन करते हुए साईं श्लोका की माता ने अपनी गर्भावस्था के दौरान अच्छे विचारों, मंत्रों और श्लोकों का अभ्यास किया।

फ्लैश कार्ड्स और ऑनलाइन शिक्षा की मदद
बच्ची के जन्म के बाद, माता-पिता ने फ्लैश कार्ड्स के माध्यम से उसे अलग-अलग विषयों की पहचान करानी शुरू की। यह एक वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक तरीका है, जिससे छोटे बच्चे जल्दी सीखते हैं। ऑनलाइन उपलब्ध फ्लैश कार्ड्स को मंगाकर बच्ची को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया।

नोबेल बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज

इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी उपलब्धि को देखते हुए, नोबेल बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में साईं श्लोका का नाम दर्ज किया गया और उसे विजेता प्रमाण पत्र व मेडल से सम्मानित किया गया। राज्य सरकार भी इस असाधारण उपलब्धि के लिए बच्ची को विशेष सम्मान देने की योजना बना रही है।
बाल संस्कार और माता-पिता की भूमिका

यह उपलब्धि न केवल साईं श्लोका की है, बल्कि उसके माता-पिता की मेहनत और सही मार्गदर्शन का भी परिणाम है। इससे यह संदेश मिलता है कि अगर माता-पिता बच्चों को सही दिशा में प्रेरित करें और उन्हें प्रारंभ से ही अच्छे संस्कार दें, तो वे असाधारण उपलब्धियां हासिल कर सकते हैं।
हमारे लिए सीख
यह घटना हर माता-पिता के लिए एक प्रेरणा है कि वे अपने बच्चों को प्रारंभ से ही संस्कार, शिक्षा और नैतिक मूल्यों से जोड़ें। माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को सीखने के नए-नए तरीकों से परिचित कराएं और उनके बौद्धिक विकास में योगदान दें।

साईं श्लोका की यह उपलब्धि यह साबित करती है कि बाल संस्कार का महत्व आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि प्राचीन काल में था। अगर हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार और शिक्षा दें, तो वे भविष्य में असाधारण ऊंचाइयों को छू सकते हैं।