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लकड़ी का पुलिया कह रहा देखो , जिंदा हूं मैं 10 साल से !

10 साल से उपयोग मै आ राहा ,लकड़ी का पुल, कंक्रीट की पुलिया 6 महीने मे ढही।

धनोरा, अमलीपदर _आज से 10 साल पहले धनोरा ग्राम पंचायत के पतेल पारा मार्ग पर पंचायत की तरफ से एक पुलिया बनाई गई थी, लेकिन मात्र 6 महीने में ही उसका कंक्रीट उखड़ गया और पुलिया जर्जर हो गई। इससे गांव वालों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

गांव के लोगों ने प्रशासन से कोई मदद न मिलने पर खुद ही जंगल से लकड़ी लाकर पुलिया के अवशेष के ऊपर ही एक अस्थायी पुल का निर्माण किया, जो आज 10 साल बाद भी मजबूती से खड़ा है। ग्रामीणों का कहना है कि जब सरकारी पुलिया लाखों रुपये खर्च करने के बावजूद चंद महीनों में ही टूट गई, तो यह सवाल उठता है कि क्या कंक्रीट से ज्यादा टिकाऊ लकड़ी है, या फिर सरकारी निर्माण कार्यों में लापरवाही और भ्रष्टाचार जिम्मेदार है?

10 साल से सुरक्षित है ग्रामीणों का लकड़ी का पुल

पतेल पारा से धनोरा जाने के रास्ते में एक छोटे नाले को पार करना लोगों के लिए बड़ी चुनौती बन गया था। स्कूल जाने वाले बच्चों से लेकर रोजमर्रा की जरूरतों के लिए आने-जाने वाले ग्रामीणों तक सभी को इस पुलिया की जरूरत थी। सरकारी पुलिया के असफल होने के बाद ग्रामीणों ने खुद मिलकर लकड़ी का पुल बनाया, जो अब तक सुरक्षित बना हुआ है।

सरकारी पुलिया पर 6 लाख खर्च, फिर भी टिक न सकी

सरकार ने इस पुल के निर्माण में करीब साढ़े 5 से 6 लाख रुपये खर्च किए, लेकिन घटिया निर्माण निम्न मान के मटेरियल के चलते यह 6 महीने में ही जवाब दे गया। वहीं, ग्रामीणों ने बिना किसी सरकारी मदद के, मात्र अपने श्रमदान से एक ऐसा पुल तैयार कर दिया, जो एक दशक से लोगों की जरूरतें पूरी कर रहा है।

ग्रामीणों का कहना है कि यदि लकड़ी का पुल 10 साल तक मजबूती से टिका रह सकता है, तो सरकार को भी इस तरह के टिकाऊ और किफायती निर्माण पर विचार करना चाहिए बल्कि लाखों रुपए खर्च कर कंक्रीट का पुल बनाना ।  यह मामला सरकारी निर्माण कार्यों की गुणवत्ता और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करता है।

अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मुद्दे पर क्या कदम उठाता है और क्या भविष्य में गांवों में टिकाऊ, किफायती और सुरक्षित पुलों के निर्माण की दिशा में कोई ठोस नीति बनाई जाती है या ग्रामीणों को उनके ही हाल में छोड़ दिया जाता है ।

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