गरियाबंद जिले के कोठीगांव गांव में सोमवार की शाम एक ऐसी घटना घटी, जिसने सबको स्तब्ध कर दिया। एक तरफ था एक खूँखार जंगली तेंदुआ, और दूसरी ओर था एक निडर दादा – जिसने अपनी जान की परवाह किए बिना अपने चार साल के पोते को मौत के मुंह से खींच लाया।

चार साल का प्रदीप नेताम अपने घर के आंगन में खेल रहा था। गांव की सामान्य शाम थी, लेकिन अचानक सब कुछ बदल गया जब एक तेंदुआ घर के पास पहुंचा और बच्चे को जबड़े में दबोचकर जंगल की ओर भागने लगा। घर पर उस समय सिर्फ प्रदीप और उसके दादा दर्शन नेताम मौजूद थे।
जैसे ही प्रदीप की चीख सुनाई दी, 60 वर्षीय दर्शन नेताम बिना कुछ सोचे समझे जान की परवाह किए बिना तेंदुए के पीछे दौड़ पड़े। कुछ ही दूरी पर उन्होंने तेंदुए का रास्ता रोका। यह एक ऐसा क्षण था, जहां कोई भी डर से पीछे हट जाता, लेकिन दर्शन नेताम डटे रहे। उन्होंने पत्थर और लाठी से तेंदुए पर हमला किया। यह संघर्ष कुछ मिनटों तक चला, लेकिन दादा की बहादुरी ने आखिरकार जीत हासिल की और तेंदुआ बच्चे को छोड़कर भाग निकला।

प्रदीप को गले में गहरी चोटें आई हैं, जिसे छुरा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया है। चिकित्सकों के अनुसार, बच्चे की हालत अब स्थिर है और जल्द ही वह स्वस्थ हो जाएगा।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद गांव में दर्शन नेताम की बहादुरी की जमकर सराहना हो रही है। लोग कह रहे हैं – “ऐसे दादा हर किसी को मिलें।” उन्होंने यह साबित कर दिया कि अपनों के लिए कुछ भी किया जा सकता है – चाहे सामने जानलेवा खतरा ही क्यों न हो।

वन विभाग ने गांव में गश्त बढ़ा दी है और तेंदुए को पकड़ने के लिए पिंजरा लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

यह घटना सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि उस निस्वार्थ प्रेम और साहस की मिसाल है जो परिवार के बुजुर्गों में अक्सर नजर आता है। दर्शन नेताम आज कोठीगांव ही नहीं, पूरे जिले के हीरो बन चुके हैं।